अष्टांग योग करने का तरीका और फायदे | Ashtanga Yoga Benefits in Hindi

Ashtanga Yoga Benefits in Hindi – देश ही नहीं, बल्कि आज पूरे विश्व में योग को सराहा और अपनाया जा रहा है। कई वैज्ञानिक शोध में भी इस बात की पुष्टि हो चुकी है कि विभिन्न प्रकार के योगासनों के अभ्यास से कई शारीरिक समस्याओं में राहत पाई जा सकती है । खैर यह तो है सामान्य बात, लेकिन अगर पूछें कि योग का आधार क्या है,

तो इस बारे में कम ही लोग जानते होंगे। ऐसे में योग के आधार को गहराई से समझने के लिए अष्टांग योग उत्तम विकल्प हो सकता है। यही वजह है कि इस आर्टिकल में हमने अष्टांग योग करने के फायदे (Ashtanga Yoga Benefits in Hindi) के साथ इससे जुड़े विभिन्न पहलुओं को समझाने की कोशिश की है।

साथ ही पाठक इस बात का भी ध्यान रखें, कि नियमित योग वैकल्पिक रूप से शारीरिक समस्याओं से बचाव और उनके लक्षणों को कुछ हद तक कम करने में मदद कर सकता है। किसी भी समस्या के पूर्ण इलाज के लिए डॉक्टरी परामर्श अत्यंत आवश्यक है।

अष्टांग योग क्या है | What is Ashtanga Yoga in Hindi

अष्टांग योग अन्य योगों से भिन्न है। वजह यह है कि यह एक शारीरिक योग नहीं, बल्कि एक तरह की कर्म साधना है। सभी योगासन के जैसे अष्टांग योग का भी नाम संस्कृत से लिया गया हैं, यह अष्टांग शब्द दो शब्द से मिलके बना हैं जिसमे पहले शब्द “अष्ट” का अर्थ आठ हैं,

और दूसरे अंग शब्द का अर्थ “अंग” हैं। अष्टांग योग महर्षि पतंजलि के योग दर्शन पर आधारित है। सभी योग आसन और प्राणायाम पतंजलि के योग सूत्रों पर आधारित हैं। पतंजलि के योग सूत्रों में पूर्ण कल्याण तथा शारीरिक, मानसिक और आत्मिक शुद्धि के लिए आठ अंग की आवश्यकताएं होती हैं।

हम इनका क्रम में अभ्यास नहीं कर रहे हैं, लेकिन सभी एक साथ विकसित हुए हैं। आइये अष्टांग योग के अंगों के विषय में जानते हैं।

अष्टांग योग के अंग | Limbs of Ashtanga Yoga in Hindi

अष्टांग योग में शामिल आठ अंग कुछ इस प्रकार हैं।

  • यम (Yama)
  • नियम (Niyam)
  • आसन (Asana)
  • प्राणायाम (Pranayama)
  • प्रत्याहार (Pratyahara)
  • धारणा (Dharaṇa)
  • ध्यान (Dhyan)
  • समाधि (Samadhi)

महर्षि पतंजलि के अनुसार, अष्टांग योग के अंग कर्म योग से समाधि पाने का मार्ग हैं। इन आठ अंगों में शामिल यम, नियंत्रण से जुड़ा है। वहीं, नियम, जीवन के उन नियमों से जुड़ा है, जो सांसारिक जीवन के मोह से मुक्त करने में मदद करते हैं। वहीं, इसमें शामिल आसन, शरीर की मुद्रा से जुड़ा है।

वहीं, प्राणायाम, सांसों को नियंत्रित करने से जुड़ा है। इसके अलावा, प्रत्याहार का मतलब है ध्यान को बाधित करने वाली आवाज, गंध, स्पर्श आदि के प्रति ध्यान को हटाना। वहीं, इसमें शामिल धारणा, एकाग्रता से संबंधित है। वहीं, इनमें शामिल सातवां अंग ध्यान है, जब एकाग्रता किसी भी चीज से बाधित नहीं होती है।

अंत में बात आती है समाधि की। समाधि को योग में शून्य भी कहा गया है, जिसका अर्थ है, कुछ भी बाकी न रह जाना यानी समाधि को प्राप्त कर व्यक्ति संपूर्ण अष्टांग योग को सिद्ध कर लेता है। यही है अष्टांग योग के अंग का सार।

वहीं, अष्टांग योग में शामिल इन अंगों को कुछ उप अंगों में बांटा गया, जो साधक को संयम, पालन, शारीरिक अनुशासन, सांस नियम, इंद्रिय अंगों पर संयम, चिंतन व मनन को जीवन में शामिल कर समाधि को प्राप्त करने की प्रक्रिया को समझाते हैं।

आसान भाषा में इसे अष्टांग योग को करने का तरीका भी कहा जा सकता है, जिसके बारे में हम आर्टिकल के आगे के भाग में विस्तार से बताएंगे।

अष्टांग योग करने के फायदे | Ashtanga Yoga Benefits in Hindi

पूरी दुनिया में अष्टांग योग का महत्व है इसके महत्व को देखते हुए इसका अभ्यास पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा किया जाता है। Ashtanga Yog के फायदे अनेक है। यह एक साधक को शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक और भावनात्मक लाभ पहुँचाता है। तो चलिए जानते है अष्टांग योग के लाभ (Ashtanga Yoga Benefits In Hindi)

  1. शारीरिक लाभ
  2. मानसिक लाभ
  3. भावनात्मक लाभ
  4. आध्यात्मिक लाभ

1. शारीरिक लाभ

यह योग शारीरिक लाभ के साथ शारीरिक शक्ति भी प्रदान करता है।  यह न केवल शारीरिक प्रशिक्षण पर ध्यान केंद्रित करता है बल्कि निरोगी शरीर भी बनाता है। यह शारीरिक दृष्टि से ऊर्जा का संचार करता है साथ ही शरीर और मस्तिष्क के बीच Coordination भी स्थापित करता है। यह दिमाग को शांत करने तथा चिंता, तनाव, डिप्रेस्शन, बुखार जैसी बीमारियों को दूर करने में भी सहायक है।

2. मानसिक लाभ

योग और प्राणायाम न केवल शारीरिक लाभ और शारीरिक शक्ति प्रदान करते है, बल्कि यह मानसिक लाभ और मानसिक उपचारो के लिए भी बहुत फायदेमंद है। यह मानसिक रोग जैसे तनाव, डिप्रेशन, चिंता, गुस्सा, कम विचार शक्ति आदि विभिन्न समस्याओ को कम करने में मददगार है। वैसे तो अष्टांग योग सभी को करना चाहिए परन्तु यह उन सभी व्यक्तियों के लिए बहुत फायदेमंद है जो शारीरिक व मानसिक रूप से कमजोर है।

3. भावनात्मक लाभ

यह योग खासतौर पर भावनात्मक रूप से मजबूत बनाता है। यह उन सभी व्यक्तियों के लिए अच्छा है जो भावनात्मक रूप से कमजोर है। यह भावनाओ को काबू रखने तथा उनपर नियंत्रण स्थापित करने में मदद करता है। यह कहा जाता है

कि भावनाओ में रहकर ही लोगो को अत्यधिक पीड़ा का सामना करना पड़ता है। लेकिन वें व्यक्ति इन सभी समस्याओं से बच सकता है जो भावनात्मक रूप से मजबूत है। और वें व्यक्ति भावनात्मक रूप से मजबूत होने के लिए अष्टांग योग करते है।

4. आध्यात्मिक लाभ

हम सभी जानते है कि अष्टांग योग आध्यात्मिक रूप से अग्रसर होने में मदद करता है। यह ईश्वर प्राप्ति, भक्ति और श्रद्धा का एक मात्र जरिया है। यह स्वयं को पहचानने तथा मन की गहराई में झाकने का एक मात्र साधन है। जो लोग आध्यात्मिक रूप से मजबूत होना चाहते है तो वह अष्टांग योग को नियमित रूप से करें।

अष्टांग योग के अन्य फयदे | Other Benefits of Ashtanga Yoga in Hindi

  • दिमाग को शांत रखने और शरीर में ऊर्जा बनाए रखने के लिए यह बहुत फायदेमंद है।
  • यह मांसपेशियों को मजबूत बनता है और साथ ही रोगो से लड़ने की क्षमता में इजाफा करता है।
  • यह रक्त को शुद्ध करता है और रक्त के प्रवाह में सुधार करता है।
  • यह शरीर और मस्तिष्क के समन्वय को बनाए रखता है

अष्टांग योग करने का तरीका | Steps to do Ashtanga Yoga in Hindi

यम का मूल अर्थ होता है नैतिकता। इसका पालन करना हर एक मनुष्य का कर्तव्य होता है। यदि कोई इसका पालन नहीं करता है तो वह खुद और समाज पर दुष्प्रभाव डालता है।

1. यम (Yama)

यम का मूल अर्थ होता है नैतिकता। इसका पालन करना हर एक मनुष्य का कर्तव्य होता है। यदि कोई इसका पालन नहीं करता है तो वह खुद और समाज पर दुष्प्रभाव डालता है।

यम के पांच उप अंग होते है –
  • अहिंसा (Ahimsa)
  • सत्य (Satya)
  • अस्तेय (Astey)
  • ब्रह्मचर्य (Brahmacharya)
  • अपरिग्रह (Aparigraha)
1. अहिंसा (Ahimsa)

मन, वचन व कर्मद्वारा किसी भी प्राणी को किसी तरह का कष्ट न पहुंचने की भावना अहिंसा है। दूसरे शब्दों में, प्राणिमात्र से प्रेम अहिंसा है।

2. सत्य (Satya)

जैसा मन ने समझा, आंखों ने देखा तथा कानों ने सुना, वैसा ही कह देना सत्य है। लेकिन सत्य केवल बाहरी नहीं, आंतरिक भी होना चाहिए।

3. अस्तेय (Astey)

मन, वचन, कर्म से चोरी न करना, दूसरे के धन का लालच न करना और दूसरे के सत्व का ग्रहण न करना अस्तेय है।

4. ब्रह्मचर्य (Brahmacharya)

अन्य समस्त इंद्रियों सहित गुप्तेंद्रियों का संयम करना-खासकर मन, वाणी और शरीर से यौनिक सुख प्राप्त न करना-ब्रह्मचर्य है।

5. अपरिग्रह (Aparigraha)

अनायास प्राप्त हुए सुख के साधनों का त्याग अपरिग्रह है। अस्तेय में चोरी का त्याग, किंतु दान को ग्रहण किया जाता है। परंतु अपरिग्रह में दान को भी अस्वीकार किया जाता है। स्वार्थ के लिए धन, संपत्ति तथा भोग सामग्रियों का संचय परिग्रह है और ऐसा न करना अपरिग्रह।

उपरोक्त पांचों साधन व्यक्ति की नैतिकता और उसके विकास, उसकी स्थिरता (टिकाव) से तो जुड़े हुए हैं ही, समाज के संदर्भ में भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं, विशेषकर तब, जब विकास और उन्नति भौतिकता की धुरी पर धूम रही हो, अर्थात् आज के समय में।

2. नियम (Niyam)

अष्टांग योग का दूसरा अंग नियम है। नियमनुसार ही जीवन में सारे कार्य पुरे किये जाने चाहिए। तभी अष्टांग योग के दूसरे चरण को पूरा किया जा सकता है।

नियम के पांच उप अंग बताएं है –
  • शौच (Shaucha)
  • संतोष (Santosha)
  • तप (Tapas)
  • स्वाध्याय (Svadhyaya)
  • ईश्वर प्रणिधान (Ishvarapranidhana)
1. शौच (Shaucha)

तन-मन और आत्मा की पवित्रता से है।

2. संतोष (Santosha)

अपने कर्तव्य का पालन करते हुए जो प्राप्त हो उसी से संतुष्ट रहना या परमात्मा की कृपा से जो मिल जाए उसे ही प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार करना संतोष है।

3. तप (Tapas)

यहां तप का अर्थ तपस्या नहीं, बल्कि अपने कर्म को किसी भी परिस्थिति में पूरी ईमानदारी से पालन करना है।

4. स्वाध्याय (Svadhyaya)

विचार शुद्धि और ज्ञान प्राप्ति के लिए विद्याभ्यास, धर्मशास्त्रों का अध्ययन, सत्संग और विचारों का आदान-प्रदान स्वाध्याय है।

5. ईश्वरप्रणिधान (Ishvarapranidhana)

ईश्वर प्रणिधान का अर्थ है, भगवान पर विश्वास रखना। यह उप अंग बताता है कि किसी भी परिस्थिति में ईश्वर के प्रति श्रद्धा भाव को कभी भी मन से नहीं निकालना चाहिए।

3. आसन (Asana)

वैसे तो शारीरिक विकारों को दूर करने के लिए कई योग है, लेकिन अष्टांग योग में आसन का अर्थ है बिना हिले-डुले एक स्थिति में आराम से बैठना। इसे स्थिर सुखमय आसन भी कहा जाता है। नियमित रूप से कुछ देर इस आसन में बैठने से मन तो शांत होता ही हैं, साथ ही शरीर में ऊर्जा भी संचित रहती है। वहीं, यह आसन अष्टांग योग के दूसरे अंग नियम में शामिल स्वाध्याय और ईश्वर प्रणिधान को गहराई से समझने की शक्ति पैदा करता है।

4. प्राणायाम (Pranayama)

बहुत से लोग प्राण का अर्थ श्वास या वायु लगाते हैं और प्राणायाम का अर्थ श्वास का व्यायाम बताते हैं, किन्तु यह धारणा गलत और भ्रामक है क्योंकि प्राण वह शक्ति है, जो वायु में क्या विश्व के समस्त सजीव और निर्जीव पदार्थों में व्याप्त है।

प्राणायाम का उद्देश्य शरीर में व्याप्त प्राण शक्ति को उत्प्रेरित, संचारित, नियंत्रित और संतुलित करना है। इससे हमारा शरीर तथा मन नियंत्रण में आ जाता है। हमारे निर्णय करने की शक्ति बढ़ जाती है और हम सही निर्णय करने की स्थिति में आ जाते हैं।

शरीर की शुद्धि के लिए जैसे स्नान की आवश्यकता है, वैसे ही मन की शुद्धि के लिए प्राणायाम की। प्राणायाम से हम स्वस्थ और निरोग होते हैं, दीर्घायु प्राप्त करते हैं, हमारी स्मरण शक्ति बढ़ती है और मस्तिष्क के रोग दूर होते हैं।

5. प्रत्याहार (Pratyahara)

सांसारिक मोह माया, सुख-दुःख को त्यागकर इन्द्रियों को नियंत्रित करना ही प्रत्याहार है। इसके द्वारा  इन्द्रियों को वश में किया जाता है और पुरे शरीर पर विजय प्राप्त कर ली जाती है। तभी तो ऋषियों तथा महाऋषियो ने कहा है अपनी सभी इन्द्रियों को अन्य विषयो से हटाकर मन को एकाग्र करना ही प्रत्याहार कहलाता है।

6. धारणा (Dharaṇa)

स्थूल वा सूक्ष्म किसी भी विषय में अर्थात् हृदय, भृकुटि, जिह्वा, नासिका आदि आध्यात्मिक प्रदेश तथा इष्ट देवता की मूर्ति आदि बाह्य विषयों में चित्त को लगा देने को धारणा कहते हैं । यम, नियम, आसन, प्राणायाम आदि के उचित अभ्यास के पश्चात् यह कार्य सरलता से होता है।

प्राणायाम से प्राण वायु और प्रत्याहार से इंद्रियों के वश में होने से चित्त में विक्षेप नहीं रहता, फलस्वरूप शांत चित्त किसी एक लक्ष्य पर सफलतापूर्वक लगाया जा सकता है। विक्षिप्त चित्त वाले साधक का उपरोक्त धारणा में स्थित होना बहुत कठिन है।

जिन्हें धारणा के अभ्यास का बल बढ़ाना है, उन्हें आहार-विहार बहुत ही नियमित करना चाहिए तथा नित्य नियमपूर्वक श्रद्धा सहित साधना व अभ्यास करना चाहिए।

7. ध्यान (Dhyan)

जैसा कि हमने ऊपर बताया कि प्रत्याहार के माध्यम से ऊर्जा को नियंत्रित किया जा सकता है। वहीं, धारणा में बदलाव कर इस ऊर्जा को शरीर में एकत्रित करने का बल मिलता है। ऐसे में जब अष्टांग योग के ये दोनों अंग एक व्यक्ति साध लेता है, तो ध्यान की स्थिति स्वयं ही आ जाती है।

जिस प्रकार नींद आती है, लाई नहीं जा सकती। ठीक वैसे ही प्रत्याहार और धारणा को साधने के बाद ध्यान स्वयं ही लग जाता है। फलस्वरूप, मन, मस्तिष्क और व्यक्तित्व के सारे विकार दूर हो जाते हैं, कुछ भी बाकी नहीं रह जाता।

8. समाधि (Samadhi)

विक्षेप हटाकर चित्त का एकाग्र होना ही समाधि है। ध्यान में जब चित्त ध्यानाकार को छोड़कर केवल ध्येय वस्तु के आकार को ग्रहण करता है, तब उसे समाधि कहते हैं अर्थात इस स्थिति में ध्यान करने वाला ध्याता भी नहीं रहता, वह अपने-आपको भल जाता है। रह जाता है मात्र ध्येय, यही ध्यान की परमस्थिति है। यही समाधि है। समाधि ध्यान की चरम परिणति है । जब ध्यान की पक्वावस्था होती है, तब चित्त से ध्येय का द्वैत और तत्संबंधी वृत्ति का भान चला जाता है।

अष्टांग योग का महत्व | Importance Of Ashtanga Yoga In Hindi

आज के जीवन में अष्टांग योग का बहुत महत्व है। यह सिर्फ एक योग नहीं है, बल्कि ईश्वर को पाने का एक साधन है। यह आपको शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक रूप से मजबूत बनाता है यह एक व्यक्ति को शारिरीक शुद्धि से लेकर मोक्ष प्राप्ति का मार्ग है

जिसे हर कोई पाना चाहता है। अष्टांग योग केवल शारीरिक और मानसिक लाभ तक ही सीमित नहीं है बल्कि यह तो जन्म और मरण के बीच का रास्ता है। तो हम कह सकते हैं कि यह शारीरिक रूप से कठोर, मानसिक रूप से स्थिर, भावनात्मक रूप से लचीला और आध्यात्मिक रूप से मजबूत बनाता है।

अष्टांग योग के लिए कुछ सावधानियां | Precautions for Ashtanga Yoga In Hindi

जैसा कि हम आर्टिकल में पहले ही बता चुके हैं कि अष्टांग योग कोई योगासन नहीं, बल्कि योग का एक आधार है, जिसमें कर्म योग के माध्यम से ज्ञान योग जागृत होता है। फलस्वरूप, अंत में समाधि की प्राप्ति होती है,

इसलिए अष्टांग योग साधना एक दिन का कार्य नहीं है। इसके सभी चरणों को साधने में कई महीने या वर्ष लग सकते हैं। इसलिए, अष्टांग योग करने से पूर्व इन बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए।

  • अष्टांग योग के प्रत्येक चरण को पार करने के लिए सावधानी और लगन से प्रयास करें।
  • चरणबद्ध तरीके से ही आगे बढ़ें। एक चरण सिद्ध होने से पूर्व अगले चरण पर जाने का प्रयास न करें।
  • मन को सहज रखें और खुद पर विश्वास करें कि अष्टांग योग के सभी अंगों को साधा जा सकता है।
  • इसमें शामिल आसनों को सुबह खाली पेट ही करें।

दोस्तों, योग कई प्रकार के होते हैं, जिसके माध्यम से न सिर्फ स्वस्थ रहा जा सकता है, बल्कि इससे असीम शांति की प्राप्ति भी की जा सकती है। ऐसे में हिन्दीहेल्थगाइड के इस आर्टिकल को अच्छे से पढ़ने के बाद यह तो समझ ही गए होंगे कि अष्टांग योग कोई योगासन नहीं, बल्कि एक योग सूत्र है।

इस सूत्र में शामिल आठ अंगों का चरणबद्ध तरीके से पालन करना ही इसे करने की प्रक्रिया है। हालांकि, अन्य योगासनों की तरह अष्टांग योग को साधना आसान नहीं। फिर भी अगर दृढ़ निश्चय कर लिया जाए, तो कोई भी व्यक्ति अष्टांग योग को साध सकता है। इससे अष्टांग योग के लाभ तो हासिल होंगे ही, साथ ही व्यक्तित्व भी निखरेगा।

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